Wednesday, August 29, 2018

मांस का मूल्य ( price of meat)

मांस का मूल्य?( Price of meat)  

मगध सम्राट चन्द्रगुप्त ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :

देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए

सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?

मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता !

तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा :
राजन,

सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,

इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।

तब सम्राट ने उनसे पूछा :
आपका इस बारे में क्या मत है ?

चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा !

रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया ।

प्रधानमंत्री ने कहा :
शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय 💓 का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें ।

यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और

उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें ।

प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और

सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।

इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख
 दीं ।

सम्राट ने पूछा :
यह सब क्या है ?
तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए

इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला ।

राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ?

जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वो अपना जान बचाने मे असमर्थ है।

और मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि ।

पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं ।

तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाय ।

शुद्ध आहार, शाकाहार !
मानव आहार, शाकाहार !

अगर ये लेख आपको अच्छा लगे तो हर व्यक्ति तक जरुर भेजे।

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Monday, August 27, 2018

ਸਹੀ ਹੈ?

*ਸਹੀ ਹੈ ????*

ਇਕ ਆਦਮੀ ਸਵੇਰੇ ਜਾਗਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਟਾਇਲਟ ਜਾਂਦਾ ਹੈ,
ਸਾਬਣ ਨਾਲ ਹਥ ਧੋਂਦਾ ਹੈ,

ਦੰਦਾਂ ਨੂੰ ਬਰੱਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ ,
ਨਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ,

ਤਿਆਰ ਹੋ ਕੇ ਅਖਬਾਰਾਂ ਪੜ੍ਹਦਾ ਹੈ ,

ਨਾਸ਼ਤਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ,

ਘਰੋਂ ਕੰਮ ਵਾਸਤੇ ਨਿੱਕਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,

ਰਿਕਸ਼ਾ ਫੜਦਾ ਹੈ , ਲੋਕਲ ਬੱਸ ਲੋਕਲ ਟਰੇਨ ਜਾਂ ਆਪਣੇ ਸਾਧਨ ਰਾਹੀਂ ਦਫਤਰ ਜਾਂ ਆਪਣੇ ਕੰਮ ਧੰਦੇ 'ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਓਥੇ ਪੂਰਾ ਦਿਨ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ , ਚਾਹ ਪਾਣੀ ਪੀਂਦਾ ਹੈ ,
ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਘਰ ਵਾਸਤੇ ਚਲ ਪੈਂਦਾ ਹੈ।

ਘਰ ਆਉਂਦਿਆਂ ਰਸਤੇ ਚ ਬਚਿਆਂ ਵਾਸਤੇ ਟਾਫੀਆਂ , ਮਠਿਆਈਆਂ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ,

ਮੋਬਾਈਲ ਵਿੱਚ ਰੀਚਾਰਜ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ,

ਹੋਰ ਛੋਟੇ ਮੋਟੇ ਕੰਮ ਨਿਪਟਾਉਂਦਾ ਹੋਇਆ ਘਰ ਪਹੁੰਚਦਾ ਹੈ ,

ਹੁਣ ਦੇਖੋ ਉਸਨੂੰ  ਦਿਨ   ਭਰ ਕਿਤੇ  ਕੋਈ "ਹਿੰਦੂ"  "ਮੁਸਲਮਾਨ"  ਜਾਂ ਕੋਈ ਕਥਿਤ "ਦਲਿਤ"  ਮਿਲਿਆ ?ਕੀ ਉਸਨੇ  ਦਿਨ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ "ਹਿੰਦੂ"  "ਮੁਸਲਮਾਨ" ਜਾਂ "ਦਲਿਤ" ਉੱਤੇ ਕੋਈ ਅਤਿਆਚਾਰ ਕੀਤਾ ?
ਉਸਨੂੰ ਦਿਨ ਭਰ ਜੋ ਮਿਲੇ ਉਹ ਸਨ •••••••ਅਖਬਾਰ ਵਾਲਾ ਭਾਈ ,

ਦੁੱਧ ਵਾਲਾ ਭਾਈ ,

ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਾਲਾ ਭਾਈ ,

ਬਸ ਕੰਡਕਟਰ ,

ਦਫਤਰ ਜਾਂ ਕੰਮ ਕਾਰ ਵਾਲੀ ਜਗ੍ਹਾ ਦੇ ਦੋਸਤ ਮਿੱਤਰ ,

ਕੁਝ ਅਨਜਾਣ ਲੋਕ ,

ਚਾਹ ਵਾਲਾ ਭਾਈ,

ਕਰਿਆਨੇ ਵਾਲਾ ਭਾਈ ,

ਮਠਿਆਈਆਂ ਵਾਲਾ ਭਾਈ ,

ਜਦੋਂ ਇਹ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਭਾਈ ਅਤੇ ਦੋਸਤ ਮਿੱਤਰ ਹਨ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ "ਹਿੰਦੂ"  "ਮੁਸਲਮਾਨ" ਜਾਂ "ਦਲਿਤ" ਕਿੱਥੇ ਹਨ ??

ਦਿਨ ਭਰ ਉਸਨੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਭਾਈ ਤੂੰ "ਹਿੰਦੂ" ਹੈਂ ?  "ਮੁਸਲਮਾਨ" ਹੈਂ ?? ਜਾਂ "ਦਲਿਤ" ਹੈਂ ???

ਜੇ ਤੂੰ "ਮੁਸਲਮਾਨ"  "ਹਿੰਦੂ" ਜਾਂ ਕਥਿਤ "ਦਲਿਤ" ਹੈਂ ਤਾਂ ਤੇਰੀ ਬਸ ਵਿੱਚ ਸਫਰ ਨਹੀਂ ਕਰਾਂਗਾ ,

ਤੇਰੇ ਹੱਥੋਂ ਚਾਹ ਨਹੀਂ ਪੀਵਾਂਗਾ,

ਤੇਰੀ ਦੁਕਾਨ ਤੋਂ ਸਮਾਨ ਨਹੀਂ ਖਰੀਦਾਂਗਾ ,

ਕੀ ਉਸਨੇ ਘਰ ਦਾ ਸਮਾਨ ਖਰੀਦਣ ਸਮੇਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਇਹ ਸਵਾਲ ਕੀਤਾ ਕਿ ਇਹ ਸਭ ਸਮਾਨ ਬਨਾਉਣ ਵਾਲੇ ਜਾਂ ਉਗਾਉਣ ਵਾਲੇ ਹਿੰਦੂ  ਮੁਸਲਮਾਨ ਜਾਂ ਕਥਿਤ ਦਲਿਤ ਹਨ ?

"ਜੇ ਸਾਡੀ ਰੋਜਮਰਾ ਦੀ ਜਿੰਦਗੀ ਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਹਿੰਦੂ ਮੁਸਲਮਾਨ ਜਾਂ ਕਥਿਤ ਦਲਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਤਾਂ ਫਿਰ ਕੀ ਕਾਰਣ ਹੈ ਕਿ "ਵੋਟਾਂ" ਆਉਂਦਿਆਂ ਹੀ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਹਿੰਦੂ , ਮੁਸਲਮਾਨ, ਸਿੱਖ , ਜਾਂ ਕਥਿਤ ਦਲਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ ?

ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਤਿੰਨ ਜਹਿਰ :

ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਦੀ ਬਕਵਾਸ ਬਹਿਸ ,

ਰਾਜਨੇਤਾਵਾਂ ਦੇ ਜਹਿਰੀਲੇ ਬੋਲ ,

ਅਤੇ ਕੁਝ ਸ਼ਰਾਰਤੀ ਅਨਸਰਾਂ ਵਲੋਂ ਸੋਸ਼ਲ ਮੀਡੀਆ 'ਤੇ ਭੜਕਾਊ ਪੋਸਟਾਂ,

ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿਣ ਨਾਲ ਸ਼ਾਇਦ ਕੁੱਝ ਹਦ ਤਕ ਸਮਸਿਆ  ਹਲ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ ।

  ਸਮਾਜ ਦੇ ਪੜ੍ਹੇ ਲਿਖੇ  ਲੋਕ ਇਸਨੂੰ ਅਗੇ ਭੇਜੋ।ਸੂਝਵਾਨ ਸਮਝ ਕੇ ਹੀ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਹੈ••••••
ਐਸਾ ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਭਾਈਚਾਰਕ ਸਾਂਝ ਨੂੰ ਮਜਬੂਤ ਅਤੇ ਭਰਿਸ਼ਟ ਮੁਤਸਬੀ ਨੇਤਾਵਾਂ ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਬਚਾਉ ।।।

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Sunday, August 19, 2018

#एक छोटी सी कहानी..

#एक छोटी सी कहानी........💞

"रेनू की शादी हुयें, पाँच साल हो गयें थें, उसके पति थोड़ा कम बोलतें थे पर बड़े सुशील और संस्कारी थें, माता_पिता जैंसे सास, ससुर और एक छोटी सी नंनद, और एक नन्ही सी परी, भरा पूरा परिवार था, दिन खुशी से बित रहा था,

          आज रेनू बीतें दिनों को लेकर बैठी थी, कैंसे उसके पिताजी नें बिना माँगे 30 लाख रूपयें अपने दामाद के नाम कर दियें, जिससे उसकी बेटी खुश रहे, कैसे उसके माता_पिता ने बड़ी धूमधाम से उसकी शादी की, बहुत ही आनंदमय तरीके से रेनू का विवाह हुआ था,

        खैर बात ये नही थी, बात तो ये थी, रेनू बड़े भाई ने, अपने माता_पिता को घर से निकाल दिया था, क्यूकि पैसें तो उनके पास बचें नही थें, जितने थें उन्होने रेनू की शादी में लगा दियें थें, फिर भला_ बच्चें माँ_बाप को क्यू रखने लगें, रेनू के माता पिता एक मंदिर मे रूके थें,
रेनू आज उनसे मिल के आयी थी, और बड़ी उदास रहने लगी थी, आखिर लड़की थी, अपने माता_पिता के लिए कैसे दुख नही होता, कितने नाजों से पाला था, उसके पिताजी ने बिल्कुल अपनी गुडिया बनाकर रखा था,
आज वही माता_पिता मंदिर के किसी कोने में भूखें प्यासें पड़ें थे,

         रेनू अपने पति से बात करना चाहती थी, वो अपने माता_पिता को घर ले आए, पर वहाँ हिम्मत नही कर पा रही थी, क्यूकि उनके पति कम बोलते थे, अधिकतर चुप रहते थे, जैंसे तैंसे रात हुई रेनू के पति और पूरा परिवार खाने के टेबल पर बैठा था, रेनू की ऑखे सहमी थी, उसने डरते हुये अपने पति से कहा,
सुनिये जी, भाईया_भाभी ने मम्मी_पापा को घर से निकाल दिया हैं, वो मंदिर में पड़े है, आप कहें तो उनको घर ले आऊ,
रेनू के पति ने कुछ नही कहा, और खाना खत्म कर के अपने कमरें में चला गया, सब लोग अभी तक खाना खा रहें थे, पर रेनू के मुख से एक निवाला भी नही उतरा था, उसे बस यही चिंता सता रही थी अब क्या होगा, इन्होने भी कुछ नही कहा, रेनू रूहासी सी ऑख लिए सबको खाना परोस रही थी,

        थोड़ी देर बाद रेनू के पति कमरें से बाहर आए, और रेनू के हाथ में नोटो का बंडल देते हुये कहा, इससे मम्मी, डैडी के लिए एक घर खरीद दो, और उनसे कहना, वो किसी बात की फ्रिक ना करें मैं हूं,
रेनू ने बात काटते हुये कहा, आपके पास इतने पैसे कहा से आए जी??
रेनू के पति ने कहा, ये तुम्हारे पापा के दिये गये ही पैसे हैं,
मेरे नही थे, इसलिए मैंने हाथ तक नही लगाए, वैसे भी उन्होने ये पैसे मुजे जबरदस्ती दिये थे, शायद उनको पता था एक दिन ऐसा आयेगा,
रेनू के सास_ससुर अपने बेटे को गर्व भरी नजरों से देखने लगें, और उनके बेटे ने भी उनसे कहा, अम्मा जी बाबूजी सब ठीक है ना??
उसके अम्मा बाबूजी ने कहा बड़ा नेक ख्याल है बेटा, हम तुम्हें बचपन से जानते हैं, तुजे पता है, अगर बहू अपने माता_पिता को घर ले आयी, तो उनके माता पिता शर्म से सर नही उठा पायेंगे, की बेटी के घर में रह रहें, और जी नही पाएगें, इसलिए तुमने अलग घर दिलाने का फैसला किया हैं, और रही बात इस दहेज के पैसे की, तो हमें कभी इसकी जरूरत नही पड़ी, क्यूकि तुमने कभी हमें किसी चीज की कमी होने नही दी, खुश रहो बेटा कहकर रेनू और उसके पति को छोड़ सब सोने चले गयें,

      रेनू के पति ने फिर कहा, अगर और तुम्हें पैसों की जरूरत हो तो मुजे बताना, और अपने माता_पिता को बिल्कुल मत बताना घर खरीदने को पैसे कहा से आए, कुछ भी बहाना कर देना, वरना वो अपने को दिल ही दिल में कोसते रहेंगें, चलो अच्छा अब मैं सोने जा रहा, मुजे सुबह दफ्तर जाना हैं, रेनू का पति कमरें में चला गया,

             और रेनू खुद को कोसने लगी, मन ही मन ना जाने उसने क्या_क्या सोच लिया था, मेरे पति ने दहेज के पैसें लिए है, क्या वो मदद नही करेंगे करना ही पड़ेगा, वरना मैं भी उनके माँ_बाप की सेवा नही करूगी,
रेनू सब समझ चुकी थी, की उसके पति कम बोलते हैं, पर उससे जादी कही समझतें हैं,
        रेनू उठी और अपने पति के पास गयी, माफी मांगने, उसने अपने पति से सब बता दिया,
उसके पति ने कहा कोई बात नही होता हैं, तुम्हारे जगह मैं भी होता तो यही सोचता, रेनू की खुशी का कोई ठिकाना नही था, एक तरफ उसके माँ_बाप की परेशानी दूर दूसरी तरफ, उसके पति ने माफ कर दिया,
            रेनू ने खुश और शरमाते हुये अपने पति से कहा,
मैं आपको गले लगा लूं, उसके पति ने हट्टहास करते हुये कहा, मुजे अपने कपड़े गंदे नही करने, दोनो हंसने लगें,
और शायद रेनू को अपने कम बोलने वालें पति का जादा प्यार समझ आ गया,,,,,,,,,,🌱
 
( कैसा लगा ये प्रसंग ?)

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Monday, August 6, 2018

Meaning of Guidance (मार्गदर्शन का अर्थ)

Meaning of Guidance  (मार्गदर्शन का अर्थ)

लग-अलग लोगों, प्रशासकों, राजनेताओं, दार्शनिकों, नेताओं और शिक्षाविदों द्वारा अलग-अलग समय में मार्गदर्शन को परिभाषित और समझ लिया गया है जिसके लिए मार्गदर्शन के दो प्रकार के अर्थ हैं- एक पुराना या पारंपरिक अर्थ है और दूसरा आधुनिक अर्थ है। अन्य सामग्रियों और विषयों की तरह, मार्गदर्शन का आधुनिक अर्थ चित्र में आया जब जोर दिया गया और आर्थिक समस्याओं, नियुक्ति या रोजगार और व्यावसायिक रुझानों पर अधिक ध्यान दिया गया।

उसके बाद नियोक्ता को अपने काम में प्रभावी बनाने के लिए अधिक से अधिक सहायता प्रदान करने की एक महसूस की आवश्यकता बन गई। यह प्रवृत्ति अब मानवता, कला, विज्ञान, वाणिज्य और पेशेवर क्षेत्रों के सभी विषयों को शामिल करने के तेज़ी से चल रही है। इसलिए अवधारणा का आधुनिक अर्थ "मार्गदर्शन" स्वयं को किसी भी विषय में

सीमित नहीं करता है। इसलिए यह समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और शिक्षा से प्रभावित है।

definitions  of guidance (मार्गदर्शन की परिभाषाएं)

"मार्गदर्शन प्रत्येक व्यक्ति को उनकी क्षमताओं को समझने और उन्हें यथासंभव विकसित करने और उन्हें जीवन लक्ष्यों से जोड़ने और अंततः सामाजिक और वांछित आत्म-मार्गदर्शन की स्थिति तक पहुंचने के लिए सक्षम करने की प्रक्रिया है। ऑर्डर। "-ट्रैकलर

"मार्गदर्शन एक व्यक्ति को वास्तविकता के खिलाफ इस अवधारणा का परीक्षण करने और खुद को संतुष्टि के साथ वास्तविकता में परिवर्तित करने और लाभ के लिए इसे बदलने के लिए, काम की दुनिया में अपनी और उसकी भूमिका की एक एकीकृत और पर्याप्त तस्वीर को विकसित करने और स्वीकार करने की प्रक्रिया है। समाज"। - राष्ट्रीय व्यावसायिक मार्गदर्शन संघ (यूएसए)

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Sunday, August 5, 2018

Rajasthan 2rd grade teachers 28000 vacancies ke form fill hone start nahi huwe extended notificatn


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 Moto Z3 exclusively for Verizon
Motorola unveiled the Moto Z3 exclusively for Verizon, though we think the exclusivity will be short-lived. And we hope that once the phone breaks free from that one carrier it will keep its price tag - $480. Again, the price is $480. We had to repeat that to soften the blow of what comes next.
How much did Moto-Lenovo do to design this phone anyway? It has the same body as the Moto Z3 Play, starting with the 6.01” Super AMOLED screen with 18:9 aspect ratio and ending with the back compatible with Moto Mods.
Okay, okay, the Moto Z3 does have a much faster chipset. It’s the same chipset as the Moto Z2 Force – a Snapdragon 835 – but at $480 it’s reasonable. And the Z3 does have a larger screen than the Z2 Force thanks to the taller aspect ratio (12% more surface area), plus it’s Super AMOLED rather than P-OLED. One thing is missing, though – the plastic shatterproof cover.
Oh, and get this – you can upgrade the Moto Z3 to work on 5G networks, the first phone of its kind! The upgrade will be done using the add-on system, Motorola will release a Moto Mod that adds blazing 5G speeds over the millimeter wave band.

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मत मारो तुम कोख में इसको

मत मारो तुम कोख में इसको

क इलाके में एक भले आदमी का देहांत हो गया लोग अर्थी ले जाने को तैयार हुये और जब उठाकर श्मशान ले जाने लगे तो एक आदमी आगे आया और अर्थी का एक पाऊं पकड़  लिया। और बोला के मरने वाले से मेरे 15 लाख लेने है, पहले मुझे पैसे दो फिर उसको जाने दूंगा।
     अब तमाम लोग खड़े तमाशा देख रहे है, बेटों ने कहा के मरने वाले ने हमें तो कोई ऐसी बात नही की के वह कर्जदार है, इसलिए हम नही दे सकतें मृतक के भाइयों ने कहा के जब बेटे जिम्मेदार नही तो हम क्यों दें।
        अब सारे खड़े है और उसने अर्थी पकड़ी हुई है, जब काफ़ी देर गुज़र गई तो बात घर की औरतों तक भी पहुंच गई। मरने वाले कि एकलौती बेटी ने जब बात सुनी तो फौरन अपना सारा ज़ेवर उतारा और अपनी सारी नक़द रकम जमा करके उस आदमी के लिए भिजवा दी और कहा के भगवान के लिए ये रकम और ज़ेवर बेच के उसकी रकम रखो और मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को ना रोको।
            मैं मरने से पहले सारा कर्ज़ अदा कर दूंगी। और बाकी रकम का जल्दी बंदोबस्त कर दूंगी। अब वह अर्थी पकड़ने वाला शख्स खड़ा हुआ और सारे लोगो से मुखातिब हो कर बोला: असल बात ये है मरने वाले से 15 लाख लेना नही बल्के उनके देना है और उनके किसी वारिस को में जानता नही था तो मैने ये खेल खेला , अब मुझे पता चल चुका है के उसकी वारिस एक बेटी है और उसका कोई बेटा या भाई नही है।

👌🏻👌🏻मत मारो तुम कोख में इसको
इसे सुंदर जग में आने दो,
छोड़ो तुम अपनी #सोच ये छोटी

इक माँ को #ख़ुशी मनाने दो,
बेटी के आने पर अब तुम
घी के दिये जलाओ,
आज ये #संदेशा पूरे जग में फैलाओ
*बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।*

।।।अच्छा लगे तो शेयर करे।।।

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Saturday, August 4, 2018

प्रेरक कथा: देने वाला कौन ?

प्रेरक कथा: देने वाला कौन ?


ज हमने भंडारे में भोजन करवाया, आज हमने ये बांटा, आज हमने वो दान किया... हम अक्सर ऐसा कहते और मानते हैं इसी से सम्बंधित एक अविस्मरणीय कथा सुनिए...

एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था। एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला। लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।
समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा---ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।
अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया। लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया। लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।
साधु ने समझाया, तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया, इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।
कथासार- किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो ये मैंने दिया!
दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं तो कहते हैं मैंने दिलाया । वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निहित मात्र बनाया हैं उन तक उनकी जरूरतों तक पहुचाने के लिये तो निहित होने का घमंड कैसा ??

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असली सफलता क्या है ?

असली सफलता क्या है ?


    तो समस्या यह है कि वे यह भी नहीं जानते कि आने वाले वर्षों में उनका जीवन कैसा रहेगा और वे अपने भविष्य के लिए परेशान हैं। तो असली समस्या क्या है? क्या वे कम बुद्धिमान हैं? क्या वे काफी बुद्धिमान हैं? क्या वे अपने भविष्य के लिए गुमराह हैं? इसका जवाब है हाँ। वे अपने भविष्य के लिए गुमराह हैं। लेकिन कैसे और
         किसने आपको गुमराह किया? भारतीय समाज ने आपको गुमराह किया।

             मैं किसी को या किसी विशेष समाज को दोष नहीं दे रहा हूं। मैं अपने समाज की सोच को दोषी ठहरा रहा हूँ । उपवास कहता है कि असाधारण कुछ भी नहीं हैं। उसी मार्ग का पालन करें जिस पर पूरा युवा चल रहा है। यहां तक ​​कि मैं भी इसमें शामिल हूँ। बचपन से हमें कुछ महान मूल्यों से सिखाया जाता है जैसे कि जीवन '3 बेवकूफों' की वार्ता की दौड़ है, यह तथ्य मेरे दोस्तों को सच है। बचपन से हम दोस्तों, परिवार और रिश्तेदारों की तुलना के लिए अच्छे अंकों और वर्ग में अच्छी रैंक स्कोर करने के लिए पुस्तकों को याद कर रहे हैं। भारत के हर घर में तुलना बहुत बुरी चीज है। कभी-कभी माता-पिता यह नहीं समझ सकते कि हर बच्चा अपने तरीके से अद्वितीय है। हर चीज कई चीजों में प्रतिभाशाली है। लेकिन हमारे समाज में एकमात्र प्रतिभा अच्छी रैंक है। क्या यह एक असली प्रतिभा है?

 मेरे अनुसार यह एक असली प्रतिभा नहीं है।

              यह एक मार्कशीट प्रतिभा है जो व्यावहारिक दुनिया में इतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण कौशल है जिसे हमने प्रारंभिक कक्षा में सीखा। इस बिंदु पर भारत में सफलता की परिभाषा गलत है। भारतीय समाज के अनुसार, एक सफल व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जिसकी इंजीनियरिंग डिग्री, सीए आदि जैसे पेशेवर डिग्री होती है। डिग्री में प्रथम श्रेणी किसने स्कोर किया है। और सभ्य वेतन के साथ नौकरी किसके पास है। क्या मैं सही हू? मैंने देखा कि ज्यादातर लोग नौकरी पाने के लिए एक ही रास्ता का पालन कर रहे हैं। हमारे माता-पिता कहते थे, "बेटा अच्छे से पढ़ के अच्छी डिग्री लेकर अच्छी  सी नौकरी ढूँढ ले लाइफ सेट हो जाएगी और शादी के लिए अच्छी  लड़की मिल जाएगी ।" बचपन से हमें नौकरियां करने के लिए मजबूर किया जाता है और कुछ अद्वितीय या कुछ भी अलग नहीं होता है। अच्छे वेतन के साथ नौकरी प्राप्त करना सफलता नहीं है।  हमारे माता-पिता सहित अधिकांश लोग नौकरियों से संतुष्ट नहीं हैं। नौकरियों में भारी मानसिक दबाव और काम का भार होता है।  बहुत से लोग अपनी नौकरी से प्यार नहीं करते हैं लेकिन वे केवल वेतन के लिए करते हैं। यह सफलता नहीं है। असली सफलता का अर्थ है स्वास्थ्य, धन और खुशी एक बिंदु पर आती है केवल एकमात्र असली सफलता है। हम इस सफलता को बहुत आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। मैं अपने सभी दोस्तों को यह बताने जा रहा हूं कि इसे कैसे प्राप्त किया जाए। कृपया टिप्पणी लिखें और अपनी समस्याओं और व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करें। मुझे अपने दोस्तों के अनुसार सफलता की परिभाषा भी बताएं

कमैंट  करके बताये 

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Friday, August 3, 2018

केरोल गिलिगन का नैतिक विकास का सिद्धांत ➤ MORAL DEVELOPMENT THEORY OF CAROL GILLIGON

केरोल गिलिगन का नैतिक विकास का सिद्धांत ➤
MORAL DEVELOPMENT THEORY OF CAROL GILLIGON  ➤

नैतिक विकास के क्षेत्र में ईमानदारी, निष्पक्षता और सम्मान जैसे लक्षणों के साथ-साथ परोपकारी व्यवहार, देखभाल और सहायता जैसे पेशेवर व्यवहार शामिल हैं। नैतिक विकास के कई सिद्धांतों का प्रस्ताव दिया गया है, लेकिन यह सबक मनोवैज्ञानिक कैरल गिलिगन द्वारा प्रस्तावित विशिष्ट सिद्धांत पर केंद्रित होगा।

गिलिगन विकासवादी मनोवैज्ञानिक लॉरेंस कोहल्बर्ग के छात्र थे, जिन्होंने नैतिक विकास के चरणों के सिद्धांत की शुरुआत की। हालांकि, गिलिगन ने महसूस किया कि उनके सलाहकार के सिद्धांत ने नैतिक विकास के लिंग मतभेदों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया है, इस तथ्य के कारण कि कोहल्बर्ग के अध्ययन में प्रतिभागी मुख्य रूप से पुरुष थे और उनके सिद्धांत में देखभाल परिप्रेक्ष्य शामिल नहीं था।




कैरल गिलिगन का जन्म 28 नवंबर, 1936 को न्यू यॉर्क शहर में हुआ था। उन्होंने 1958 में स्वर्थमोर कॉलेज से समा सह लाउड(summa cum laude ) का स्नातक (Graduated) किया। उन्होंने 1960 में नैदानिक मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर राडक्लिफ विश्वविद्यालय में उन्नत काम करने के लिए आगे बढ़े। उन्होंने 1964 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से सामाजिक मनोविज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। गिलिगन ने  1967 में हार्वर्ड  प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एरिक एरिक्सन के साथ पढ़ना शुरू किया। 1970 में वह लॉरेंस कोहल्बर्ग के लिए एक शोध में  सहायक बन गईं। कोहल्बर्ग नैतिक विकास , न्याय और अधिकारों के उनके मंच सिद्धांत पर शोध के लिए जाने जाते हैं। गिलिगन का प्राथमिक ध्यान लड़कियों में नैतिक विकास में था । इन दुविधाओं में उनकी दिलचस्पी बढ़ी क्योंकि वे  वियतनाम युद्ध और गर्भपात पर विचार कर रहे थे।  वियतनाम युद्ध और महिलाओं के बारे में सोचने के बारे में सोचने वाले युवा पुरुषों से मुलाकात की।


गिलिगन ने तर्क दिया कि नर और मादाएं अक्सर अलग-अलग सामाजिककृत होती हैं, और मादाएं पुरुषों के मुकाबले पारस्परिक संबंधों पर दबाव डालने के लिए अधिक उपयुक्त होती हैं और दूसरों के कल्याण की ज़िम्मेदारी लेती हैं। गिलिगन ने सुझाव दिया कि यह अंतर मां के साथ बच्चे के रिश्ते के कारण है और मादाओं को परंपरागत रूप से एक नैतिक परिप्रेक्ष्य सिखाया जाता है जो समुदाय पर केंद्रित होता है और व्यक्तिगत संबंधों की देखभाल करता है।  


  गिलिगन ने देखभाल सिद्धांत के नैतिकता के चरणों का प्रस्ताव दिया, जो कि 'सही' या 'गलत' कार्य करता है। गिलिगन का सिद्धांत देखभाल-आधारित नैतिकता और न्याय आधारित नैतिकता दोनों पर केंद्रित है।

देखभाल-आधारित नैतिकता निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है:

➡अंतःस्थापितता और सार्वभौमिकता पर जोर देता है।
➡अभिनय का मतलब हिंसा से बचने और ज़रूरत वाले लोगों की मदद करना है।
➡देखभाल- लड़कियों में उनकी मां के संबंधों के कारण लड़कियों में  नैतिकता अधिक मानी  जाती  है।
➡चूंकि लड़कियां अपनी मां से जुड़ी रहती हैं, इसलिए वे निष्पक्षता के मुद्दों के बारे में चिंता करने के इच्छुक नहीं हैं।

⇒न्याय आधारित नैतिकता निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है:

➡दुनिया ऐसे स्वायत्त व्यक्तियों से बनी  है जो एक दूसरे के साथ बातचीत(Interact) करते हैं।
➡अभिनय का मतलब है असमानता से परहेज करना।
➡लड़कों में खुद को और उनकी मां के बीच अंतर करने की आवश्यकता का कारण माना जाता है। 
➡क्योंकि वे अपनी मां से अलग होते हैं, और असमानता की अवधारणा से अधिक चिंतित हो जाते हैं।

हमारे जासूस /पोर्क्यूपिन परिदृश्य (porcupine scenario) पर लौटने पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि व्यक्तियों ने दो दृष्टिकोणों के साथ समस्या से संपर्क किया: न्याय आधारित नैतिकता या देखभाल-आधारित नैतिकता।  यहाँ लिंग मतभेद स्पष्ट थे। 

न्याय आधारित परिप्रेक्ष्य वाले व्यक्ति विभिन्न दावों के बीच संघर्ष के रूप में किसी भी दुविधा को देखते हैं। हमारे जासूस  एक चीज चाहते हैं; पोर्क्यूपिन (porcupine) कुछ असंगत चाहता है। उन  दोनों के पास बिल खोदने  पर वैध दावा नहीं हो सकता है, इसलिए उनमें से केवल एक ही सही हो सकता है। दुविधा का समाधान संघर्ष का संकल्प नहीं है; यह एक फैसला  है, जिसमें एक तरफ सबकुछ मिलता है और दूसरी तरफ कुछ भी नहीं मिलता है।

गिलिगन के नैतिक विकास सिद्धांत के तीन चरणों ⇨
Three Stages of Gilligan’s Moral Development Theory⇩

गिलिगन ने एक सिद्धांत तैयार किया जिसमें तीन चरण थे जो देखभाल की नैतिकता का कारण बनें और नैतिक विकास की नींव रखी ।

1. पूर्व पारंपरिक चरण: इस चरण में, एक महिला का लक्ष्य जीवित रहना है। वह व्यक्तित्व पर केंद्रित है और वह  सुनिश्चित कर रही है कि उसकी मूल जरूरतों को पूरा किया गया है। व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने की क्षमता दूसरों की व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने की क्षमता पर प्राथमिकता लेती है, यदि वह नैतिक विकास के इस चरण में हर बार खुद को चुनती है।

2. पारंपरिक चरण: इस चरण में, एक महिला पहचानती है कि आत्म-बलिदान उसके जीवन में "भलाई" का स्रोत हो सकता है। वह अन्य लोगों की मदद करने की आवश्यकता को पहचानती है और उन जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होने में नैतिक संतुष्टि पाती है। अपने स्वयं के अस्तित्व पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, वह दूसरों को सर्वोत्तम तरीके से जीवित रहने में मदद करने पर केंद्रित रहती  है।


3. प्रसव पारंपरिक चरण: इस चरण में, एक महिला पहचानती है कि "जरूरतों को औचित्य साबित करना " समाप्त नहीं होता है। चाहे वह अपने अस्तित्व या दूसरों के अस्तित्व पर केंद्रित है, अहिंसा का एक सिद्धांत है जो उसके द्वारा किए गए हर निर्णय पर लागू होता है। वह खुद को चोट पहुंचाने या दूसरों को चोट पहुंचाने की इच्छा नहीं रखती है, जरूरतों को पूरा करने के वैकल्पिक तरीकों की तलाश में है ताकि हर कोई उनकी देखभाल के साथ आगे बढ़ सके।

गिलिगन का सुझाव है कि दो संक्रमण हैं जो देखभाल के नैतिकता के चरणों के दौरान भी होते हैं। पहला संक्रमण, जो पूर्व पारंपरिक और पारंपरिक चरणों के बीच होता है, एक महिला की नैतिक नैतिकता को उस व्यक्ति से स्वार्थी बनाता है जो दूसरों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी साझा करता है।

दूसरा संक्रमण, जो पारंपरिक और प्रसव  पारंपरिक चरणों के बीच होता है, एक संक्रमण है जो एक महिला को "सच्चाई" पर ध्यान केंद्रित करने के लिए "सच्चाई" पर ध्यान केंद्रित करने से प्रेरित करता है। अपने आप के लिए और दूसरों के लिए जीवित रहने के तरीकों की तलाश करने के बजाय, वह उन विकल्पों की तलाश शुरू करती है जो कुछ नैतिक स्थिरांकों के लिए सही रहने की आवश्यकता से प्रेरित होती हैं

गिलिगन का प्रस्ताव है कि एक महिला के लिए प्रत्येक चरण तक पहुंचने की कोई अनुमानित उम्र नहीं है। वह यह भी सुझाव देती है कि कुछ महिलाएं प्रसव पारंपरिक चरण तक कभी नहीं पहुंच सकती हैं। वह जो सुझाव देती है वह यह है कि चरणों के माध्यम से आंदोलन संज्ञानात्मक क्षमता पर आधारित होता है और अंतर्निहित अनुभवों की बजाय किसी महिला की भावना में परिवर्तन होता है।

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Thursday, August 2, 2018

जियो_यूनिवर्सिटी / एचआरडी मंत्रालय द्वारा अपनाये गए 'सख़्त क्राइटेरिया' (??)

'जब सैयां भये कोतवाल'??

एचआरडी मंत्रालय द्वारा अपनाये गए 'सख़्त क्राइटेरिया' (??) 


आईआईटी दिल्ली, आईआई मुम्बई एवं इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस(बैंगलोर) जैसे दिग्गज और उत्कृष्ट सरकारी संस्थानों के साथ साथ इस लिस्ट में मनीपाल अकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन और बिट्स पिलानी जैसे पुराने निज़ी शिक्षण संस्थानों के साथ छेवीं एन्ट्री 'जियो यूनिवर्सिटी' की है..

#जियो_यूनिवर्सिटी#

जिओ यूनिवर्सटी, जिसका उच्च शिक्षा क्षेत्र
में कोई उल्लेखनीय योगदान तो ख़ैर दूर की बात है, अभी तक कैंपस तक स्थापित नहीं हुआ है. कोई कोर्स शुरू नहीं, कोई फैकल्टी नहीं, कोई प्लेसमेंट नही और छलांग सीधे भारत के शीर्ष छः उच्च शिक्षण संस्थानों में!

यहां गौरतलब है कि एचआरडी मंत्रालय द्वारा अपनाये गए 'सख़्त क्राइटेरिया' (??) के चलते पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ इस 'इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस' लिस्ट में से आउट हो चुकी है, मगर 'जियो यूनिवर्सिटी' जैसी बिना अस्तित्व की यूनिवर्सटी मज़े से जुगाड़ बैठा कर बैकडोर एंट्री के जरिये इस लिस्ट में शामिल है.

उच्च शिक्षा से जुड़े कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज को दशकों लग जाते हैं इस इस इंस्टीटूट ऑफ एमिनेंस लिस्ट के लिए जरूरी पात्रता हासिल करने में, और दूसरी तरफ बिना कुछ किये धरे जियो जैसे अदारे मलाई चाट ले जाते हैं..

निजी क्षेत्र के संस्थानों को यह दर्जा देने में कोई हर्ज नहीं, पर उन्हें पहले इस स्टेटस को हासिल करने का दमख़म दिखाने भी तो दीजिये हुजूर...

अब तो बस यहीं कसर रह गयी है कि बाहरवीं (मेडिकल ग्रुप) के अपने किसी चहेते छात्र को पहले देश का सर्वोत्तम डॉक्टर घोषित कर दीजिए और फिर उसकी पीठ थपथपा कर कहिये- अब डॉक्टरी का कोर्स कर जरूर लेना भइये!

#रूल्स_गए_तेल_लेने#
#जियो_रे_बाहुबली#
#RIP_Equality_and_Fairness

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Names of famous psychologist and their given theories

 


Names of famous psychologist and their given  theories 


Albert bandura -- social learning theory 




    Jerome k, brunner -- cognitive          development of childrens 








Erik erikson --theory of psychosocial development



Sigmond Freud -- Psycho-Analysis Theory 




      Lawrence kohlberg -- moral            development theory 





                                                      Abraham maslow -- Hierarchy of needs theory (needs theory )




Ivan pavlow -- condition / uncondition responce theory 





Jean piaget -- cognitive development theory 



Carl rogger -- Self actualization theory                                                                                                                                                        
                                                                                 
                                                        B.F. Skinner -- operant conditioning 




Edward thorndike -- operant conditioning within behaviourism 



Lev vygotsky -- social culture theory / social development theory 





John watson -- classical conditioning within behaviourism 




Wilhelm Wundt -- structuralism ,founder of experimental
psychology 




Wolfgang Kohler -- Insight learning theory 







John dewey -- learning by doing method 





Carol Giligon -- care perspective theory 





Louis thursten -- group factor theory of intelligence 






Edward thorndike -- multiple factor theory of intelligence 




Alfred binet -- one factor theory of intelligence





Charles Edward Spearman -- two factor theory of intelligence 





J.P. Guilford (Joy Paul Guilford)-- three dimentional theory of intelligence 




Robert sternberg -- triarchic theory of intelligence






Howard gardner -- multiple intelligence theory                                                                                                                                                                                                                                          




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Wednesday, August 1, 2018

मनोवैज्ञानिक -लॉरेंस कोहल्बर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत [ HINDI LANGUAGE ] (Psychologist - Theory of Ethical Development of Lawrence Kohlberg)

universal shiksha \hindi




मनोवैज्ञानिक -लॉरेंस कोहल्बर्ग का  नैतिक विकास का सिद्धांत  





कोहल्बरग  के बारे में ---


लॉरेंस कोहलबर्ग कई सालों से हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे। वह 1970 के दशक की शुरुआत में अपने काम के लिए प्रसिद्ध हो गए। उन्होंने एक विकास मनोवैज्ञानिक के रूप में शुरू किया और फिर नैतिक शिक्षा के क्षेत्र में चले गए। वह विशेष रूप से नैतिक विकास के सिद्धांत के लिए जाने जाते थे, जिसे उन्होंने हार्वर्ड सेंटर फॉर मोरल एजुकेशन (नैतिक शिक्षा )में आयोजित शोध अध्ययनों के माध्यम से लोकप्रिय किया।





सबसे पहले हम कोहल्बर्ग की सबसे मजेदार कहानी के बारे में जानते हैं



कोहल्बर्ग (1958) की सबसे अच्छी तरह से ज्ञात कहानियों में से एक हेनज़ नामक एक व्यक्ति से संबंधित है जो यूरोप में कहीं रहता था |

हेनज़ की पत्नी एक विशेष प्रकार के कैंसर से मर रही थी। डॉक्टरों ने कहा कि एक नई दवा जो एक रसायनज्ञ द्वारा बनाई गयी है उससे उसे बचाया जा  सकता है। एक स्थानीय रसायनज्ञ द्वारा दवा की खोज की गई थी, और हेनज़ ने कुछ खरीदने के लिए सख्त कोशिश की थी, लेकिन रसायनज्ञ दवा बनाने के लिए दस गुना पैसे मांग  कर रहा था, और यह हेनज़ की तुलना में बहुत अधिक था। हेनज़ केवल उसकी लागत ही चूका सकता था | परिवार और दोस्तों से मदद के बाद भी आधे पैसे कर सका  | उन्होंने रसायनज्ञ को समझाया कि उनकी पत्नी मर रही है और पूछा कि क्या वह दवा सस्ता हो सकती है या बाद में बाकी राशि चूका देगा उसके लिए ठहर जाए |

रसायनज्ञ ने इनकार कर दिया कि उन्होंने दवा की खोज की थी और इससे पैसे कमाने जा रहे थे। पति अपनी पत्नी को बचाने के लिए बेताब था, इसलिए उस रात बाद में वह केमिस्ट में  गचुराने के लिए घुस गया  और दवा चुरा ली।

एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण से, यह महत्वपूर्ण नहीं है कि प्रतिभागी सोचता है कि हेनज़ को क्या करना चाहिए। कोहल्बर्ग के सिद्धांत में कहा गया है कि प्रतिभागी जो औचित्य प्रदान करता है वह महत्वपूर्ण है, उनकी प्रतिक्रिया का रूप है | 


संभावित तर्कों के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं जो छः चरणों से संबंधित हैं:



                 चरण एक के अनुसार

(आज्ञाकारिता): हेनज़ को दवा चोरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसे परिणामस्वरूप जेल में रखा जाएगा जिसका अर्थ होगा कि वह एक बुरे व्यक्ति है।
या: हेनज़ को दवा चुरा लेनी चाहिए क्योंकि यह केवल 200 डॉलर के लायक है और न कि चिकित्सक इसके लिए कितना चाहता था; हेनज़ ने भी इसके लिए भुगतान करने की पेशकश की थी और चोरी नहीं कर रहा था।





           चरण दो के अनुसार

 (स्व-ब्याज): हेनज़ को दवा चुरा लेनी चाहिए क्योंकि अगर वह अपनी पत्नी को बचाता है तो वह ज्यादा खुश होगा, भले ही उसे जेल की सजा देनी पड़े।
या: हेनज़ को दवा चोरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि जेल एक भयानक जगह है, और वह अपनी पत्नी की मौत की तुलना में जेल सेल में अधिकतर लगी होगी।





          चरण तीन के अनुसार

(अनुरूपता): हेनज़ को दवा चुरा लेनी चाहिए क्योंकि उसकी पत्नी इसकी अपेक्षा करती है; वह एक अच्छा पति बनना चाहता है।
या: हेनज़ को दवा चोरी नहीं करना चाहिए क्योंकि चोरी खराब है और वह आपराधिक नहीं है; उसने कानून तोड़ने के बिना वह सब कुछ करने की कोशिश की है, आप उसे दोष नहीं दे सकते।





         चरण चार के अनुसार

 (कानून-व्यवस्था): हेनज़ को दवा चोरी नहीं करना चाहिए क्योंकि कानून चोरी करने पर रोक लगाता है, जिससे इसे अवैध बना दिया जाता है।
या: हेनज़ को अपनी पत्नी के लिए दवा चुरा लेनी चाहिए, लेकिन अपराध के लिए निर्धारित सजा भी लेनी चाहिए और साथ ही साथ ड्रगिस्ट को भुगतान करना चाहिए। अपराधी कानून के संबंध में नहीं चल सकते हैं।





         चरण पांच के अनुसार

  (मानवाधिकार): हेनज़ को दवा चुरा लेनी चाहिए क्योंकि कानून के बावजूद हर किसी को जीवन चुनने का अधिकार है।
या: हेनज़ को दवा चोरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि वैज्ञानिक को उचित मुआवजे का अधिकार है। यहां तक ​​कि अगर उसकी पत्नी बीमार है, तो वह अपने कार्यों को सही नहीं ठहरा सकता  है।





         चरण छह के अनुसार

 (सार्वभौमिक मानव नैतिकता): हेनज़ को दवा चुरा लेनी चाहिए, क्योंकि मानव जीवन को बचाने से दूसरे व्यक्ति के संपत्ति अधिकारों की तुलना में अधिक मौलिक मूल्य होता है।
या: हेनज़ को दवा चोरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि दूसरों को दवा की तरह बुरी तरह की आवश्यकता हो सकती है, और उनके जीवन समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।







कोहल्बर्ग ने कई प्रश्नों की एक श्रृंखला से पूछा जैसे कि:

1. क्या हेनज़ ने दवा चुरा ली है?

2. क्या हेनज़ अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता है तो क्या यह कुछ बदल जाएगा?

3. क्या होगा यदि मरने वाला व्यक्ति अजनबी था, तो इससे कोई फर्क पड़ता है?

4. क्या महिला की हत्या के लिए रसायनज्ञ को गिरफ्तार करना  चाहिए?



नैतिक विकास के कोहल्बर्ग के चरण

कोहल्बर्ग ने नैतिक तर्क के तीन स्तरों की पहचान की: पूर्व परंपरागत, पारंपरिक, और बाद में पारंपरिक। प्रत्येक स्तर नैतिक विकास के जटिल चरणों से जुड़ा हुआ है।

स्तर 1: पूर्व परंपरागत
पूर्व-पारंपरिक स्तर पर, एक बच्चे की नैतिकता की भावना बाहरी रूप से नियंत्रित होती है। बच्चे माता-पिता और शिक्षकों जैसे प्राधिकरण के आंकड़ों के नियमों को स्वीकार करते हैं और विश्वास करते हैं। पूर्व पारंपरिक नैतिकता वाले बच्चे ने अभी तक सही या गलत के संबंध में समाज के सम्मेलनों को अपनाया या आंतरिक रूप से आंतरिक नहीं किया है, बल्कि इसके बजाय बाहरी परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया गया है कि कुछ कार्यवाही हो सकती हैं।

चरण 1: आज्ञाकारिता और सजा अभिविन्यास
(आज्ञाकारी और सजा)

चरण 1 नियमों का पालन करने और दंडित होने से बचने की बच्चे की इच्छा पर केंद्रित है।

उदाहरण के लिए, एक क्रिया को नैतिक रूप से गलत माना जाता है क्योंकि अपराधी को दंडित किया जाता है; इस अधिनियम के लिए दंड जितना बुरा होगा, उतना ही "बुरा" अधिनियम माना जाता है।

चरण 2: वाद्य यंत्र अभिविन्यास
(अहंकार केंद्रित का चरण)

चरण 2 "मेरे लिए इसमें क्या है?" स्थिति व्यक्त करता है, जिसमें सही व्यवहार को परिभाषित किया जाता है जो व्यक्ति अपने सर्वोत्तम हित में होना चाहता है। चरण दो तर्क दूसरों की जरूरतों में सीमित रुचि दिखाता है, केवल उस बिंदु पर जहां यह व्यक्ति के अपने हितों को आगे बढ़ा सकता है। नतीजतन, दूसरों के लिए चिंता वफादारी या आंतरिक सम्मान पर आधारित नहीं है, बल्कि एक "आप मेरी पीठ खरोंच करते हैं, और मैं तुम्हारा खरोंच करूंगा" यह मानसिकता है ।

एक उदाहरण तब होगा जब एक बच्चे को अपने माता-पिता द्वारा घबराहट करने के लिए कहा जाता है। बच्चा पूछता है "मेरे लिए इसमें क्या है?" और माता-पिता बच्चे को भत्ता देकर एक प्रोत्साहन देते हैं।

स्तर 2: पारंपरिक
पारंपरिक स्तर पर, एक बच्चे की नैतिकता की भावना व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों से जुड़ी होती है। बच्चे प्राधिकरण के आंकड़ों के नियमों को स्वीकार करते रहते हैं, लेकिन अब यह उनके विश्वास के कारण है कि सकारात्मक संबंधों और सामाजिक व्यवस्था को सुनिश्चित करना आवश्यक है। इन चरणों के दौरान नियमों और सम्मेलनों का पालन कुछ हद तक कठोर है, और एक नियम की उचितता या निष्पक्षता शायद ही कभी पूछताछ की जाती है।

चरण 3: अंतर व्यक्तिगत समझौता - अच्छा लड़का, अच्छी लड़की अभिविन्यास 
(प्रशंसा का मंच)

चरण 3 में, बच्चे दूसरों की मंजूरी चाहते हैं और अस्वीकृति से बचने के तरीकों से कार्य करते हैं। अच्छे व्यवहार पर जोर दिया जाता है और लोग दूसरों के लिए "अच्छा" होते हैं।

चरण 4: कानून और व्यवस्था अभिविन्यास
(सामाजिक प्रणाली के लिए प्राधिकरण सम्मान का मंच)

चरण 4 में, बच्चे एक कार्यशील समाज को बनाए रखने में उनके महत्व के कारण नियमों और सम्मेलन को अंधाधुंध स्वीकार करता है। नियमों को सभी के लिए समान माना जाता है, और जो करने के लिए "माना जाता है" करके नियमों का पालन करना मूल्यवान और महत्वपूर्ण माना जाता है। चरण चार में नैतिक तर्क चरण तीन में प्रदर्शित व्यक्तिगत अनुमोदन की आवश्यकता से परे है। यदि एक व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है, तो शायद हर कोई होगा - इस प्रकार कानून और नियमों को बनाए रखने के लिए एक दायित्व और कर्तव्य है। समाज के अधिकांश सक्रिय सदस्य चरण चार पर रहते हैं, जहां नैतिकता मुख्य रूप से बाहरी बल द्वारा निर्धारित होती है।

स्तर 3: प्रसव पारंपरिक (परम्परागत )
परंपरागत स्तर के बाद, एक व्यक्ति की नैतिकता की भावना को अधिक सार सिद्धांतों और मूल्यों के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है। लोग अब मानते हैं कि कुछ कानून अन्यायपूर्ण हैं और उन्हें बदला या हटा दिया जाना चाहिए। इस स्तर को एक बढ़ती अहसास से चिह्नित किया गया है कि व्यक्ति समाज से अलग संस्थाएं हैं और व्यक्ति अपने नियमों के साथ असंगत नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं। बाद में पारंपरिक नैतिकता अपने नैतिक सिद्धांतों से जीते हैं, जिनमें आम तौर पर जीवन, स्वतंत्रता और न्याय के रूप में ऐसे बुनियादी मानवाधिकार शामिल होते हैं- और पूर्ण नियमों के बजाय नियमों को उपयोगी लेकिन परिवर्तनीय तंत्र के रूप में देखते हैं जिन्हें बिना किसी प्रश्न के पालन किया जाना चाहिए। चूंकि पारंपरिक परंपरागत व्यक्ति सामाजिक सम्मेलनों पर एक स्थिति के अपने नैतिक मूल्यांकन को बढ़ाते हैं, विशेष रूप से चरण छह पर, उनके व्यवहार, कभी-कभी पूर्व-पारंपरिक स्तर पर उन लोगों के साथ भ्रमित हो सकते हैं। कुछ सिद्धांतकारों ने अनुमान लगाया है कि कई लोग कभी भी इस नैतिक तर्क के इस स्तर तक नहीं पहुंच सकते हैं।


चरण 5: सामाजिक अनुबंध अभिविन्यास
(सामाजिक अनुबंध)

चरण 5 में, दुनिया को विभिन्न राय, अधिकार और मूल्य रखने के रूप में देखा जाता है। इस तरह के दृष्टिकोण को प्रत्येक व्यक्ति या समुदाय के लिए पारस्परिक रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए। कानून कठोर नैतिकता  के बजाय सामाजिक अनुबंध के रूप में माना जाता है। जो लोग सामान्य कल्याण को बढ़ावा नहीं देते हैं उन्हें सबसे बड़ी संख्या में लोगों के लिए सबसे अच्छा अच्छा मिलने के लिए जरूरी किया जाना चाहिए। यह बहुमत निर्णय और अपरिहार्य समझौता के माध्यम से हासिल किया जाता है। लोकतंत्र  सरकार सैद्धांतिक रूप से चरण पांच के  तर्क पर आधारित है।

चरण 6: सार्वभौमिक नैतिक प्रधानाचार्य अभिविन्यास
(विवेक का मंच)

चरण 6 में, नैतिक तर्क सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों का उपयोग करके अमूर्त तर्क पर आधारित है। आम तौर पर, चुने गए सिद्धांत मूर्त (concrete) के बजाय अमूर्त (abstract) होते हैं और समानता, गरिमा या सम्मान जैसे विचारों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। कानून केवल न्याय के आधार पर मान्य होते हैं, और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता अन्यायपूर्ण कानूनों का उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदारी रखती है। लोग उन नैतिक सिद्धांतों का चयन करते हैं जिन्हें वे अनुसरण करना चाहते हैं, और यदि वे उन सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, तो वे दोषी महसूस करते हैं। इस तरह, व्यक्ति कार्य करता है क्योंकि ऐसा करने का नैतिक अधिकार है (और इसलिए नहीं कि वह दंड से बचना चाहता है), यह उनकी सबसे अच्छी रुचि में है, यह उम्मीद है कि यह कानूनी है, या पहले यह सहमति हुई है। हालांकि कोहल्बर्ग ने जोर दिया कि चरण छह मौजूद है, लेकिन उन्हें उस स्तर पर लगातार संचालन करने वाले व्यक्तियों की पहचान करना मुश्किल हो गया।

प्रशन--
1) कोहल्बर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत में कितने चरण हैं?

उत्तर ) कोहल्बर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत में छह चरण है ।

2) कोहल्बर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत में कितने स्तर हैं
उत्तर) कोहल्बर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत में तीन स्तर है ।

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LAWRENCE KOHLBERG'S MORAL DEVELOPMENT THEORY in english

UNIVERSAL SHIKSHA

LAWRENCE KOHLBERG'S MORAL DEVELOPMENT THEORY       


ABOUT KOHLBERG---



Lawrence KohlBerg was, for many years, a professor at Harvard University. He became famous for his work there beginning in the early 1970s. He started as a developmental psychologist and then moved to the field of moral education. He was particularly well-known for his theory of moral development which he popularized through research studies conducted at Harvard's Center for Moral Education.


FIRST WE KNOWS ABOUT KOHLBERG'S MOST FAMOUS STORY 

One of the best known of Kohlberg’s (1958) stories concerns a man called Heinz who lived somewhere in Europe

Heinz’s wife was dying from a particular type of cancer. Doctors said a new drug might save her. The drug had been discovered by a local chemist, and the Heinz tried desperately to buy some, but the chemist was charging ten times the money it cost to make the drug, and this was much more than the Heinz could afford.Heinz could only raise half the money, even after help from family and friends. He explained to the chemist that his wife was dying and asked if he could have the drug cheaper or pay the rest of the money later.
The chemist refused, saying that he had discovered the drug and was going to make money from it. The husband was desperate to save his wife, so later that night he broke into the chemist’s and stole the drug. 

stole the drug Why or why not?
From a theoretical point of view, it is not important what the participant thinks that Heinz should do. Kohlberg's theory holds that the justification the participant offers is what is significant, the form of their response.  

below are some of many examples of possible arguments that belong to the six stages:

                 According to Stage one 
  • (obedience): Heinz should not steal the medicine because he will consequently be put in prison which will mean he is a bad person.
Or: Heinz should steal the medicine because it is only worth $200 and not how much the druggist wanted for it; Heinz had even offered to pay for it and was not stealing anything else.


           According to Stage two
  •  (self-interest): Heinz should steal the medicine because he will be much happier if he saves his wife, even if he will have to serve a prison sentence.
Or: Heinz should not steal the medicine because prison is an awful place, and he would more likely languish in a jail cell than over his wife's death.


          According to Stage three 
  • (conformity): Heinz should steal the medicine because his wife expects it; he wants to be a good husband.
Or: Heinz should not steal the drug because stealing is bad and he is not a criminal; he has tried to do everything he can without breaking the law, you cannot blame him.


         According to Stage four
  •  (law-and-order): Heinz should not steal the medicine because the law prohibits stealing, making it illegal.
Or: Heinz should steal the drug for his wife but also take the prescribed punishment for the crime as well as paying the druggist what he is owed. Criminals cannot just run around without regard for the law; actions have consequences.


         According to Stage five
  •   (human rights): Heinz should steal the medicine because everyone has a right to choose life, regardless of the law.
Or: Heinz should not steal the medicine because the scientist has a right to fair compensation. Even if his wife is sick, it does not make his actions right.


         According to Stage six
  •  (universal human ethics): Heinz should steal the medicine, because saving a human life is a more fundamental value than the property rights of another person.
Or: Heinz should not steal the medicine, because others may need the medicine just as badly, and their lives are equally significant.



Kohlberg asked a series of questions such as:

1. Should Heinz have stolen the drug?
2. Would it change anything if Heinz did not love his wife?
3. What if the person dying was a stranger, would it make any difference?
4. Should the police arrest the chemist for murder if the woman died?

Kohlberg’s stages of moral development

Kohlberg identified three levels of moral reasoning: pre-conventional, conventional, and post-conventional. Each level is associated with increasingly complex stages of moral development.

Level 1: pre-conventional 

Throughout the pre-conventional level, a child’s sense of morality is externally controlled. Children accept and believe the rules of authority figures, such as parents and teachers.  A child with pre-conventional morality has not yet adopted or internalized society’s conventions regarding what is right or wrong, but instead focuses largely on external consequences that certain actions may bring.

Stage 1: Obedience and Punishment Orientation

(obedient and punishment)
Stage 1 focuses on the child’s desire to obey rules and avoid being punished. 
For example, an action is perceived as morally wrong because the perpetrator is punished; the worse the punishment for the act is, the more “bad” the act is perceived to be.

Stage 2: Instrumental Orientation

(stage of ego centric)
Stage 2 expresses the “what’s in it for me?” position, in which right behavior is defined by whatever the individual believes to be in their best interest. Stage two reasoning shows a limited interest in the needs of others, only to the point where it might further the individual’s own interests. As a result, concern for others is not based on loyalty or intrinsic respect, but rather a “you scratch my back, and I’ll scratch yours” mentality. 
An example would be when a child is asked by his parents to do a chore. The child asks “what’s in it for me?” and the parents offer the child an incentive by giving him an allowance.

Level 2: Conventional

Throughout the conventional level, a child’s sense of morality is tied to personal and societal relationships. Children continue to accept the rules of authority figures, but this is now due to their belief that this is necessary to ensure positive relationships and societal order. Adherence to rules and conventions is somewhat rigid during these stages, and a rule’s appropriateness or fairness is seldom questioned.

Stage 3: inter personal accord - Good Boy , Nice Girl Orientation

(stage of appreciation)
In stage 3, children want the approval of others and act in ways to avoid disapproval. Emphasis is placed on good behavior and people being “nice” to others.

Stage 4: Law and Order Orientation

(stage of authority respect for social system )
In stage 4, the child blindly accepts rules and convention because of their importance in maintaining a functioning society. Rules are seen as being the same for everyone, and obeying rules by doing what one is “supposed” to do is seen as valuable and important. Moral reasoning in stage four is beyond the need for individual approval exhibited in stage three. If one person violates a law, perhaps everyone would—thus there is an obligation and a duty to uphold laws and rules. Most active members of society remain at stage four, where morality is still predominantly dictated by an outside force.

Level 3: Post-conventional

Throughout the post-conventional level, a person’s sense of morality is defined in terms of more abstract principles and values. People now believe that some laws are unjust and should be changed or eliminated. This level is marked by a growing realization that individuals are separate entities from society and that individuals may disobey rules inconsistent with their own principles. Post-conventional moralists live by their own ethical principles—principles that typically include such basic human rights as life, liberty, and justice—and view rules as useful but changeable mechanisms, rather than absolute dictates that must be obeyed without question. Because post-conventional individuals elevate their own moral evaluation of a situation over social conventions, their behavior, especially at stage six, can sometimes be confused with that of those at the pre-conventional level. Some theorists have speculated that many people may never reach this level of abstract moral reasoning.

Stage 5: Social Contract Orientation

(social contracts )
In stage 5, the world is viewed as holding different opinions, rights, and values. Such perspectives should be mutually respected as unique to each person or community. Laws are regarded as social contracts rather than rigid edicts. Those that do not promote the general welfare should be changed when necessary to meet the greatest good for the greatest number of people. This is achieved through majority decision and inevitable compromise. Democratic government is theoretically based on stage five reasoning.

Stage 6: Universal Ethical Principal Orientation

(stage of conscience )
In stage 6, moral reasoning is based on abstract reasoning using universal ethical principles. Generally, the chosen principles are abstract rather than concrete and focus on ideas such as equality, dignity, or respect. Laws are valid only insofar as they are grounded in justice, and a commitment to justice carries with it an obligation to disobey unjust laws. People choose the ethical principles they want to follow, and if they violate those principles, they feel guilty. In this way, the individual acts because it is morally right to do so (and not because he or she wants to avoid punishment), it is in their best interest, it is expected, it is legal, or it is previously agreed upon. Although Kohlberg insisted that stage six exists, he found it difficult to identify individuals who consistently operated at that level.

Questions--


1) How many stages in kohlberg's moral development theory?
ans); Six stages in kohlberg's moral development theory .

2 ) How many levels in kohlberg's moral development theory

ans) Three leveles in kohlberg's moral development theory .



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